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नग़मे जो पिछले दिनों याद आते रहे

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 मुझे अभी ख्याल आया कि एक काम करता हूं ...पिछले दिनों बख़्शी साब के जो गीत याद आते रहे हैं उन की एक फेहरिस्त बना लेता हूं ..क्योंकि ये सभी गीत मेरे दिल के बहुत करीब हैं....बहुत ज़्यादा ...  सोशल मीडिया पर तो पता नहीं कहां कहां सारा सामान बिखरा पड़ा रहता है ..इसलिए यह काम किया अभी #AnandBakshi

परदे में रहने दो ...परदा न उठाओ

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 फिल्मी नग़मे भी ऐसे जैसे हमारे ख़ून में ,हमारे डीएनए में ही रच बस जाते हैं....और जब भी हम इन को याद करते हैं तो हमें ज़िंदगी के वे लम्हे याद आ जाते हैं जब हमने पहली बार वे गीत सुने थे ... मुझे भी बचपन में सुने तो दो तीन गीत जो सब से पहले सुने होंगे या जिन की याद मेरे ज़ेहन में है, उनमें से एक गीत तो यही है परदे में रहने दो परदा न उठाओ....परदा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा। हसरत जयपुरी ने लिखा था इस गीत को, यह मुझे चंद रोज़ पहले ही पता चला।  आज मैंने देखा यह फिल्म शिकार १९६८ में आई थी...मैं पांच साल का रहा हूंगा ...मुझे अच्छे से याद है हम लोग अमृतसर में रहते थे ...रेडियो पर ऊंची ऊंची आवाज़ में यह गीत बज रहा है ...शायद सामने वाले घर में ..लेकिन आवाज़ मुझे अच्छे से आ रही है ...लेकिन आप पूछेंगे कि तुम उस वक़्त कर क्या रहे थे ...तो सुनिए जनाब, उस समय मैं घर की एक नाली पर बैठा हाल ही में बने "खुले में शौच निषेध" कानून का उल्लंघन कर रहा हूं ...मस्त हो कर गीत सुन रहा हूं और साथ ही यह सोच कर झूम रहा हूं कि पापा कह कर गये हैं कि दफ़्तर से आने पर जब वह शाम को बाज़ार जाएँगे तो मुझे भी साथ

आनंद बख़्शी के गीतों का जादू

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 जैसे ही मेरी उम्र के लोग चार-पांच साल के हुए आनंद बख़्शी की शोहरत के सितारे बुलंदी छूने लगे ...लेकिन ज़िंदगी के उस दौर में हमें रेडियो या किसी समारोह से पहले मोहल्ले में लगे बड़े से लाउड-स्पीकर से ऊंची आवाज़ में बढ़िया बढ़िया गीत सुनने से मतलब होता था .. फिर एक बार रेडियो सुनते हुए पता चला कि आनंद बख़्शी ने ३५०० के करीब फिल्मी गीत लिखे हैं और ६५० के करीब फिल्मों के लिए लिखे हैं...मैं तो यह सुन कर हैरान ही रह गया। इतने गीत ...उस के बाद मैं जब भी रेडियो पर गीत सुनता और गीतकार का नाम ध्यान से सुनता ... आनंद बख़्शी का नाम सुनते ही मैं हैरान हो जाता कि अच्छा, यह मेरा इतना पसंदीदा गीत और मुझे पता ही न था कि यह भी आनंद बख्‍शी की क़लम का ही जादू है ... ख़ैर, एक बात मैंने देखी है ...नेट पर भी देखता हूं ..बहुत सी जगहें ऐसी हैं जहां पर गीत के बोल तो मिल जाते हैं लेकिन गीतकार का नाम लिखने में उन्हें बहुत परेशानी होती है ...पता नहीं क्यों...और कईं बार तो गीतकार का नाम भी गलत लिखा होता है ...और भी एक बात, गीतकार के लिखे हुए लिरिक्स भी थोड़े इधर उधर लिखे होते हैं...इसलिए कुछ भी जानकारी हासिल करने के

गीत बहार शुरु करने का ख़्याल

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टूटी-फूटी जैसी भी ब्लॉगिंग हो पा रही है ..कर रहा हूं ...२००७ से ... शायद अब तक २००० आलेख भी हो चुके होंगे ...लेकिन मैंने उन्हें कभी पढ़ा नहीं ...क्योंकि वे मेरे पढ़ने लायक है नहीं...जैसे हलवाई को पता होता है कि उसने बर्फी बनाने में क्या गड़बड़ी की है, इसलिए वह अपनी मिठाई कभी नहीं खाता, ऐसी कहावत है ...और शायद इसी कहावत से प्रेरित मैं भी अपना लिखा पढ़ने से भागता हूं हमेशा... लेकिन एक बात है ...जिस के लिए मेरे ब्लॉग मशहूर हैं (या बदनाम हैं, कुछ भी) कि मैं पोस्ट के नीचे एक बढ़िया सा फिल्मी गीत ज़रूर एम्बेड कर देता हूं ... और एक मज़ेदार बात शेयर करूं कि पढ़ने वाले तो पता नहीं उस गीत को सुनते होंगे या नहीं, लेकिन मैं पोस्ट करने के बाद उसे १०-१५ बार ज़रूर सुन लेता हूं ...क्योंकि ये सभी गीत मेरे बेहद पसंदीदा गीत होते हैं...दिलोदिमाग़ के एकदम करीब... मुझे हिंदोस्तानी फिल्मी गीतों से बेहद मोहब्बत है ..हिंदोस्तानी फिल्मी इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि लगभग सभी गीत हिंदोस्तानी ज़ुबान में ही लिखे गये हैं...हिंदी और उर्दू को मिला -जुला कर ...दरअसल मैंने मिलाने-जुलाने की बात तो ऐसे लिख दी जैसे कि ये दो अ