गीत बहार शुरु करने का ख़्याल
टूटी-फूटी जैसी भी ब्लॉगिंग हो पा रही है ..कर रहा हूं ...२००७ से ... शायद अब तक २००० आलेख भी हो चुके होंगे ...लेकिन मैंने उन्हें कभी पढ़ा नहीं ...क्योंकि वे मेरे पढ़ने लायक है नहीं...जैसे हलवाई को पता होता है कि उसने बर्फी बनाने में क्या गड़बड़ी की है, इसलिए वह अपनी मिठाई कभी नहीं खाता, ऐसी कहावत है ...और शायद इसी कहावत से प्रेरित मैं भी अपना लिखा पढ़ने से भागता हूं हमेशा...
लेकिन एक बात है ...जिस के लिए मेरे ब्लॉग मशहूर हैं (या बदनाम हैं, कुछ भी) कि मैं पोस्ट के नीचे एक बढ़िया सा फिल्मी गीत ज़रूर एम्बेड कर देता हूं ... और एक मज़ेदार बात शेयर करूं कि पढ़ने वाले तो पता नहीं उस गीत को सुनते होंगे या नहीं, लेकिन मैं पोस्ट करने के बाद उसे १०-१५ बार ज़रूर सुन लेता हूं ...क्योंकि ये सभी गीत मेरे बेहद पसंदीदा गीत होते हैं...दिलोदिमाग़ के एकदम करीब...
मुझे हिंदोस्तानी फिल्मी गीतों से बेहद मोहब्बत है ..हिंदोस्तानी फिल्मी इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि लगभग सभी गीत हिंदोस्तानी ज़ुबान में ही लिखे गये हैं...हिंदी और उर्दू को मिला -जुला कर ...दरअसल मैंने मिलाने-जुलाने की बात तो ऐसे लिख दी जैसे कि ये दो अलग ज़ुबानें हैं ...इन्हें मिलाना पड़ता होगा..नही, ऐसी बात नहीं है। ये सब बातें हमें हमारे उर्दू के उस्ताद जी ..जनाब मोहम्मद क़मर ख़ान साहब ने बड़े अच्छे से समझाई हुई हैं...वे उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी लखनऊ के उर्दू कोचिंग सेटंर के इंचार्ज हैं ...और अकसर हमें बहुत सी फिल्मों और फिल्मी गीतों की मिसाल देकर बताया करते थे कि ये फिल्में इसलिए हिट हुईं ...इसलिए इन्होंने सारे रिकार्ड तोड़ दिए क्योंकि ये आम आदमी की ज़ुबान है ...और हम लोग क्लास में बैठे बैठे उन की बातें सुन कर मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह पाते थे...मैं तो उन्हें कहता था कि अपने स्कूल के प्राईमरी उस्ताद के बाद एक वही इंसान हैं जिन्हें मैंने उर्दू की एलिमेंटरी शिक्षा इतनी शिद्दत से देते पाया है ... हमारी क्लास में पुलिस अफसर, बैंक अधिकारी, जिला प्रशासन के अधिकारी, रिटायर्ड जज, वकील, जर्नलिस्ट तो रहते ही थे ...इस के साथ ही दसवीं कक्षा में पढ़ते हुए बच्चे भी वहां आते थे उर्दू ज़ुबान को सीखने ...और घरेलू महिलाएं, अध्यापिकाएं, यूनिवर्सिटी टीचर ... शायद मेरे से कुछ पेशे छूट ही गये होंगे जो मुझे इस वक्त याद नहीं आ रहे हैं... अपने उर्दू उस्ताद जी के बारे में फिर कभी विस्तार से चर्चा करूंगा ...वह एक अज़ीम शख़्शियत हैं।
अच्छा, कल ईस्टर था ...और आज सुबह मुझे यह ख्याल आया कि फिल्मी गीतों के बारे में, इन को लिखने वालों के बारे में सारा दिन सोचते हो, इन गीतों को इतना सुनते हो ....इतना चाहते हो...जो गीत पसंद करते हो उन्हें अपनी डायरी में भी लिख लेते हो ...तो फिर इन सब यादों को ब्लॉग रूपी एक अलमारी में ही क्यों नहीं समेट लेते ...मैंने ख़ुद से कहा कि इन सब बातों को आज से एक ब्लॉग में सहेजने की कोशिश करूंगा ..
यह पहली पोस्ट तो बस यूं ही इस नए ब्लॉग की शुरूआत की सूचना ही है ...एक गीत यहां शेयर कर रहा हूं जिसे सुनते सुनते इतने बरस हो गए लेकिन अभी भी जब सुनते हैं तो ....क्या होता है! आप ख़ुद महसूस कीजिए...
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